बुधवार, 10 जून 2009

जब कोई बात बिगड़ जाए

जब कोई बात बिगड़ जाए
जब कोई मुश्किल पड़ जाए
तुम देना साथ मेरा ओ हमनवा
जब कोई बात बिगड़ जाए
जब कोई मुश्किल पड़ जाए
तुम देना साथ मेरा ओ हमनवा
ना कोई है ना कोई था
ज़िन्दगी में तुम्हारे सिवा
तुम देना साथ मेरा ओ हमनवा
(साभार : फ़िल्म जुर्म)

एक वक्त था जब ये गाना बहुत प्यारा लगता था; पर तब कौन जानता था कि अपनी जिंदगी की सच्चाई भी यही गाना बनने वाला है। जब सच मे बात बिगड़ गई है तो साथ देने वाला कोई नही मिलता। यु ही कभी जब जिंदगी के उठापटक के बारे मे सोचता हु तो लगता है कि ये कल की ही बात है जब मेरे हाथों मे चाँद तारे हुआ करते थे। तब भी कोई नही था जिंदगी मे, पर एक का होना ही जिंदगी की सारी कमियों को पुरा कर रहा था, और साथ छूटना आरम्भ हुआ तो एक एक कर सब छूटते चले गए। कुछ ने मेरा साथ छोड़ा तो कुछ को मैंने छोड़ा। कभी जिनका साथ सबसे अच्छा लगता था; कभी जिनके लिए सब कुछ करने को तैयार रहता था ओ लोग भी कब दूर हो गए पता नही चला।
ना तो मै जिंदगी को लेकर बहुत संवेदनशील रहा ना ही इतना स्वार्थी की किसी के एहसान को भूल जाऊँ। सब कुछ भूल कर ये कैसे भूल सकता हूँ कि कोई ममतामयी अंचल था जिसने मेरे हाथो से मौत का प्याला छीन कर फिर से जीना सिखाया। कैसे भूल जाऊ कि किसी ने मुझे हर रिश्तो का प्यार व स्नेह देकर रिश्तों की गरिमा को बताया।
पर सब कुछ होते हुए भी आज अकेला जीने की कोशिश मे सारी रात गुजरे पलों के साये मे बिता देता हूँ। सोचता हूँ कि काश गाने के लफ्ज़ सही होते और कोई तो होता जो साथ देता जब सारा जहा साथ छोड़ दे

2 comments:

बसंत आर्य 10 जून 2009 को 9:53 pm बजे  

आपकी तनहाई कुछ सोचने को विवश करती है. दुआ है आपके लिए

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