शुक्रवार, 6 मार्च 2009

एक लाख करोड़ रुपया से भी ज्यादा गया घोटाला में

स्वतंत्र भारत मे घोटालों का आरंभ नेहरू मंत्रीमंडल में कृष्णमेनन द्वारा जीप खरीद घोटाला के साथ किया गया। उसके बाद से तो घोटालों की बरसात होने लगी। जीप खरीद घोटाला में भारत सरकार द्वारा लंदन की एक फर्म को 2000 जीप के लिये आर्डर दिया गया था। लगभग पुरा पैसा देने के बाद भी उनमें से मात्र 155 जीप ही भारत पहुच सका। ब्रिटेन में भारत के तत्कालीन उच्चायुक्त रहे वी के कृष्णमेनन को बाद में नेहरू ने मंत्री पद से सुशोभित किया। 1957 के मूंदड़ा कांड में तत्कालीन वित्तमंत्री टी टी कृष्णमाचारी को नैतिक आधार पर अपना पद छोड़ना पड़ा था तथा उद्योगपति हरिदास मूंदड़ा को लंबी सजा हुई। इस मामले में वित मंत्री टीटी कृष्णमचारी, वित सचिव एच एम पटेल, जीवन बीमा निगम के चेयरमैन एल एस वैद्यनाथन समेत कई व्यक्तियो पर जीवन बीमा निगम के 1.25 करोड रूपये को उद्योगपति हरिदास मूंदडा की छः कंपनीयो में लगाने का आरोप लगा था। इसका खुलासा फिरोज गांधी ने किया था। पर नेहरू ने कृष्णमचारी को पुन: मंत्री बना दिया। धर्मतेजा कांड में भी बस लीपापोती हुयी थी। यही स्थिति इंदिरा गांधी के समय 1971 मे नागरवाला कांड, 1975 में मारुति भूमि कांड, 1980 में तेल घोटाला, 1982 का चुरहट लाटरी कांड आदि की हुई। नागरवाला कांड की सचचाई का तो किसी को पता तक नहीं चल सका। फिर राजीव के समय 1987 में बोफोर्स कांड में उनपर स्वीडिश कंपनी बोफोर्स को फायदा पहुचाने के लिये 64 करोड लेने का आरोप, पीवी नरसिंहा राव के काल 1987 में लखूभाई पाठक घोटाला कांड और फिर 1993 में सरकार बचाने के लिए शिबू सोरेन आदि को दी गयी रिश्वत के बाद हर्षद मेहता के द्वारा शेयर मार्केट घोटाला ने तो एक बारगी पुरे देश को हिला दिया। इसके बाद यूरिया घोटाला, चारा घोटाला, शेयर बाजार घोटाला, ताज कारीडोर घोटाला, स्टांप पेपर घोटाला और ना जाने कितने जो विस्मृति के गर्भ में समा गये है।
अनुमानतः एक लाख करोड रूपया अब तक देश में घोटालेबाजो के जेब में जा चुका है। और इनमें से सजा कितनो को हुयी है? नेहरू के समय से ही आरोपीतो को पुरस्कृत करने की परंपरा आरंभ हो गयी। नेहरू ने स्वयं जीप घोटाला के आरोपीत कृष्णमेनन व मुंदडा कांड में इस्तीफा देने वाले टी. टी. कृष्णमचारी को मंत्री पड़ दिया। उस समय से लेकर आज तक कोई मिसाल नहीं मिलता जिसमें किसी बडे नेता या उद्योगपति को घोटाला के आरोप में कोई बडी सजा हुयी हो। एक अनुमान के अनुसार 1 लाख करोड रूपया अब तक घोटालेबाजों की जेब में जा चुका है। यह पैसा आखिर किसका है? जनता जो दिन रात खुन पसीना बहा कर कमा रही है उसे घोटालेबाज विदेशो में ले जाकर जमा कर रहे है। देश कर्ज के बोझ तले धंसता जा रहा है। प्रश्न यह है कि क्या इसी स्वतंत्रता की कामना गांधी ने की थी? क्या इसी के लिये चंद्रशेखर, भगत सिंह, सुखदेव और खुदीराम बोस जैसो ने जान कुर्बान किया? वास्तव में 1947 में भारत अंग्रेजो की गुलामी से आजाद तो हुआ परंतु एक नयी गुलामी के लिये। यह गुलामी थी सतालोलुप राजनीतिज्ञों की। फिर लूट-खसोट, घोटाला और भ्रष्टाचार की एक ऐसी गंगा बही जिसमें डूब कर सताधीशो ने जम कर पुण्य कमाया। एक बेतुकी जिद और प्रधानमंत्री बनने की लालसा ने देश का विभाजन कराया और गांधी की कमजोर कडी नेहरू ने स्वतंत्रता को बपौती मानकर भ्रष्टाचार की नीव डाल दी। बाद में वंशवाद के प्रणेता कांग्रसियो के काल में भ्रष्टाचार की लंबी कतार लग गयी। पर अछुता तो कोई नही रहा। चाहे लोहियावादी लालू प्रसाद यादव हो या भाजपा के लालकृष्ण आडवानी आरोपो की बौछार में कोई भी धवल नही।

3 comments:

Anshu Mali Rastogi 6 मार्च 2009 को 2:45 pm बजे  

बंधु, जनता का पैसा था घोटाले में गया।

निशाचर 7 मार्च 2009 को 1:02 pm बजे  

कम से कम आप इस बारे में सचेत हैं देखकर ख़ुशी हुई वर्ना मैं तो समझता था कि इस विषय पर अब कोई विचार नहीं करता. लोगो को जागरूक करते रहिये अपनी कलम (की बोर्ड) से...... शायद कभी लोगों के खून में उबाल आये

Unknown 7 मार्च 2009 को 6:33 pm बजे  

अंशुमाली जी यही तो सोचना है कि अगर हम एक बार भी इस बात को समझते कि हमारा पैसा है तो उसे यूँ घोटालेबाजों के हाथ में जाने देते? और एक कलम (या की बोर्ड) से कुछ नहीं होता, जब तक की एक लहर, एक उद्दीपन ना हो जाये. धन्यवाद आपके टिप्पणी के लिए

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