मंगलवार, 3 मार्च 2009

भारत स्वतंत्र हुआ चंद लोगों की गुलामी का लिए!!!

भारत को स्वतंत्रता तो 1947 में ही मिल गयी पर इस स्वतंत्रता का उपयोग किसने और किस रूप में किया, यह विचारणीय प्रश्न है। क्या सच में यह स्वतंत्रता आम जनता को मिली? क्या जनता अपनी स्वतंत्रता का उपयोग कर पा रही है? यह एक जटिल प्रश्न है और इसका जवाब और भी जटिल है। भारत के संविधान के अनुसार यह एक स्वतंत्र राष्ट्र है। इसका एक स्पष्ट संविधान है। पर क्या एक अधिनियम, एक बिल या कागज के एक पन्ने पर लिख देने से स्वतंत्रता की प्राप्ति संभव है। अगर आपका जवाब हां है तो आप हमें बताये कि कितनी स्वतंत्रता प्राप्त है आपको? बताये क्या आप स्वतंत्र है राजनीतिज्ञों के द्वारा किये जा रहे घोटालों के बारे में जानने के लिये? क्या आपको स्वतंत्रता प्राप्त है जानने का कि संसद में जनहित की कितनी बातें होती हैं? क्या आाप जान पाते है कि आपके द्वारा चुने गये प्रतिनिधि जनहित का कितना कार्य करते हैं? क्या आप नगरपालिका के दफ्तर में जाकर वहां चल रहे गडबडझाला के बारे में पुछ सकते है? क्या आप कर सकते है विरोध सफेदपोशो के गुंडागर्दी का? क्या कभी आपने सोचा भी है कि सरकारी अमला से लेकर मंत्री और संतरी किसके पैसा पर पलते है और उन्हे किनके प्रति जिम्मेदारी रखनी है? और आप सोचते है तो कितनी बार इसे अमल मे ला पाते है? अगर नही तो थोथी है स्वतंत्रता की बातें, झुनझुना देकर बहलाया है सत्ता के दलालो ने आजतक आपको। सन् 1947 को स्वतंत्रता मिली चंद राजनीतिज्ञो को और स्वतंत्रता थी सता की गुलामी का और बाबुशाही के सुदृढ़ीकरण का।
कहते है सोच को बदलो समाज बदल जायेगा, और समाज बदलेगा तो देश बदल जायेगा। अब भी समय है निर्भय हो आंधी का तेज झोका बनने का, ऐसा झोका जो सडे-गले विसंगतियों को दूर बहा ले जाये और अपने पीछे स्वच्छ निर्मल जमीन छोड जाये। इसके लिये आज कोई जेपी नहीं आने वाला। खुद निर्णय लेना होगा, स्वयं खडा होना होगा। एक खडा होगा दूसरा खुद जुडेगा, तीसरा मिलेगा और कारवां बनता जायेगा। जनएकता से बढ़ कर कोई शक्ति नहीं है। सबसे बडी ताकत जन में निहित है। जिसके नाम पर देश का शासन चलता है। संविधान की प्रस्तावना जिसके लिये है और तुम खुद बेखबर हो अपनी क्षमता से! बहुत हो गया, अब तो जगो, जानो अपनी क्षमता को! तुममें हनुमान का बल है। खडा हो! कारवां बनो और छिन लो अपनी स्वतंत्रता को। देश के भाग्य विधाता बनो और उखाड फेको जर्जर व्यवस्था को, एक ऐसी व्यवस्था के लिये जहां सब कुछ पारदर्शी हो। जहां सच में जनतंत्र हो। जहां तुम खुद खडा हो कर किसी भी नीति और नियत पर सवाल कर सको और उसका जवाब भी पा सको।
भारत की कुछ जवलंत समस्यायों से सम्बंधित एक श्रृखला आरम्भ करने की मै कोशिश कर रहा हूँ जिसमें एक एक कर कुछ मुद्दों पर चर्चा करूंगा। अगर आप सब कुछ मुद्दे सूझा सके औ अपने विचारों को भी यहाँ रख सके तो सोने मे सुहागा बन जाएगा.

इस श्रंखला का सबसे पहला मुद्दा है घोटाला: इस पर अगले पोस्ट में बात करेंगे।

2 comments:

अनुनाद सिंह 4 मार्च 2009 को 9:27 am बजे  

नेहरू और उनके विदेशी मानसिकता वाले खानदान ने इस देश में वास्तविक स्वतन्त्रता आने ही नहीं दिया। देश अब भी अंग्रेजों के चमचों द्वारा चलाया जा रहा है। वंशवाद अब भी फल-फूल रहा है।

RAJIV MAHESHWARI 4 मार्च 2009 को 9:53 am बजे  

ये सब करना तो सभी चाहते है.... लकिन कोई उचित प्लेटफार्म नही मिलाने के कारन ........ ये सब हो रहा है.

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