शनिवार, 7 मार्च 2009

ईश्वर तुम्हारी जरुरत नही मुझे!

ईश्वर
एक प्रतिक मात्र है
वह सोचता है
और फैसला लेता है
ईश्वर तक पहुचने की राह
इतनी आसान नहीं है
वह कही दीखता नहीं
उसका कोई पता भी नहीं
पर उसके एजेंट फैले है
गली गली मे
उनके ही दिमाग से
ईश्वर सोचता है
और फैसला लेता है.

ईश्वर
परे नहीं है मानव प्रवृतियो से
उसमे भी है अपना पराया का ज्ञान
उसे भी चाहिए हवी
उसे भी पसंद है
प्रशस्ति गान

ईश्वर
अगर तुम्हे कही मिल जाये
भटकते हुए गलियों मे
ढूंढ़ते हुए भक्तों को
या फिर हावी मे डाले गएँ
सामग्री को लेने के लिए
हाँथ बढ़ते हुए
तो कहना
मुझे उसकी जरुरत नहीं
क्योंकि
मैं हूँ मानव
और उसमे भी है
मानवीय कमजोरिया

4 comments:

Unknown 7 मार्च 2009 को 8:39 am बजे  

भैया पहले बिना गलती किये लिख तो लो, इश्वर नहीं ईश्वर.

तुम्हें उसकी जरूरत नहीं ऐसा तुम्हीं कह देना उस से जब कभी वह तुम्हें मिले. हमें तो उस की जरूरत है. उसके बिना हमारा काम ही नहीं चल सकता.

Unknown 7 मार्च 2009 को 10:20 am बजे  

मैंने आपको कब कहा कि आप कह देना, ये तो मानसिकता का फर्क है न. ईश्वर के लिए मंदिरों में हजारो का दान देने वाले जरुरार्त्मंद इन्सान को किस प्रकार से दुत्कार कर भगाते है?
और धन्यवाद टाइपिंग की गलती की तरफ ध्यान दिलाने के लिए. आगे भी अगर गलती हो तो बताते रहे, आपका स्वागत है.

Anshu Mali Rastogi 7 मार्च 2009 को 12:41 pm बजे  

ईश्वर वहीं है जहां विश्वास नहीं है।

Unknown 7 मार्च 2009 को 6:30 pm बजे  

अंधश्रद्धा से कुछ नहीं होता और खुट पर विश्वास ही सबसे बड़ा विश्वास है. आपकी टिपण्णी के लिए धन्यवाद

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