शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

रिश्ते बनने मे बाधक है विश्वाश

विश्वाश क्या है? एक येसा रिश्ता जिसमे आप सामने वाले को वो सब कुछ बता देते है जिसके द्वारा आपको कभी भीहानि पहुचाया जा सकता है पर उसी वक्त आपको यह भी पता होता है की वह येसा कुछ नही करने वाला है। जिसदिन आपको लगने लगता है कि अब आप सामने वाले को कुछ नही बता सकते है क्यूंकि उससे आपकी स्वतंत्रताखतरे मे पड़ जायेगी अथवा उससे आपको हानि पहुचाई जा सकती है, उसी वक्त विश्वाश ख़त्म हो जाता है। औरविश्वाश ख़त्म होने के साथ साथ सारे रिश्ते भी, क्योकि रिश्तों कि बुनियाद ही विश्वाश पर रखी जाती है.
पर अक्सर येसा होता कि जैसे ही रिश्तों से स्पेस (एक दुसरे के लिए जगह) ख़त्म होने लगता है वैसे वैसे बुनियादभी कमजोर होने लगती है। पर विश्वाश और स्पेस तो देखने मे एक दुसरे के विरोधी लगते है। विश्वाश का मतलबएक दुसरे से सब कुछ सच सच बता देना। उसी वक्त स्पेस का अर्थ है कि जिंदगी मे अपने लिए भी कुछ बचा कररखना। क्या यह सम्भव है कि विश्वाश के साथ स्पेस का संतुलन रखा जा सके?
मुझे लगता है कि विश्वाश ख़ुद मे भ्रामक शब्द है। क्या यह सम्भव है कि हम किसी से अपने सारे भेद खोल कर रखदे? अगर नही तो विश्वाश कहा रह पाता है? यहाँ यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि अगर हम रिश्तो मे स्पेस नहीरखते तो उनके टूटने का खतरा बन जाता है। यहाँ बाध्यता भी हो जाती है विश्वाश को सिमित करने का। और सचकहे तो विश्वाश को सिमित अर्थो मे ही लिया जा सकता है। जब इसे इसके वास्तविक अर्थ मे प्रयुक्त करते है तो यहबोझ बनने लगता है।
इस वक्त लिखने का कारण मेरे एक दोस्त है। उनका नाम यहाँ लिखना सम्भव नही है। उन्होंने किसी पर इतनाविश्वाश किया कि जिंदगी मे उनका अपना कुछ रह ही नही गया। कुछ समय तक सब सही रहा पर वही जब स्पेसकी समस्या उठने लगी तो वह समझौता की जगह आदर्शवादी हो गए। और आज उनके ऊपर उनकी प्रेमिका ने नाजाने कितने आरोपों की बौछार कर दी है। वो मेरे अच्छे दोस्त है और उन्होंने मुझ पर भी विश्वाश (!) किया है। इसनाते मुझे पता है कि उनपर जो भी आरोप लगाये गए है वो थोड़ा भी सच नही है। वह व्यक्ति इतना आदर्शवादी है किइस प्रकार की टुच्ची हरकत कर ही नही सकता।
कुछ समय पहले तक उनकी प्रेमिका भी इस बात को मानती थी पर ना जाने क्या हुआ कि चंद लम्हों मे फिजाबदल गई। खैर मै बात कर रहा था विश्वाश और स्पेस की। मुझे लग रहा है कि उनहोने इतना विश्वाश कर के ग़लतकिया और दूसरी गलती रिश्तों मे स्पेस नही रख के की। आज अक्सर येसा हो रहा है। और ना केवल प्रेमी प्रेमिकामे बल्कि पति पत्नी, पिता पुत्र और भी कई सारे रिश्तों मे। मेरी समझ तो यही कहती है कि किसी को वक्त से पहले समझाने की कोशिश करो ना ही उसके लिए इतना सोचो कि उसे लगने लगे कि उसकी सवतंत्रता चीनी जा रहीहै। कई बार देख कर भी मक्खी निगलना अच्छे रिश्ते बनने के लिए आवश्यक है। वैसे मेरे प्रिया दोस्त के साथआगे क्या होता है और इस रिश्ते का अंजाम क्या होता है यह मै वक्त वक्त पर आप सभी को बताता रहूँगा।
तब तक के लिए बंद चला सोने।

2 comments:

बेनामी,  20 फ़रवरी 2009 को 1:10 am बजे  

असली रिश्ता वो होता है जिसमें कोई बात छुपाने का मन ही न करे, जिसमें व्यक्ति किसी बंदिश या आदर्श के तहत नही बल्कि अपनी इच्छा से दूसरे के समक्ष खुली किताब बन बैठे। विश्वास व स्पेस एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी नही अपितु पूरक हैं। रिश्तों में विश्वास या स्पेस थोपा नही जा सकता। स्पेस शब्द के मायने मेरे लिए एक झूठ का पुलिंदा नही, बल्कि एक व्यक्ति का अपना व्यक्तितत्व है जिसे वह रिश्तों में जुड़कर भी संभाल कर रखना चाहता है। जब दो स्पेस आपस में मिल जाते हैं तो घुटन से मुक्ति होती है, साँस लेने को हवा मिलती है..

Unknown 21 फ़रवरी 2009 को 7:06 pm बजे  

आपने सही कहा वर्षा जी पर यही तो प्रश्न है कि विश्वाश की सीमा कब स्पेस का अतिक्रमण करने लगती है. आपने कहा कि खुली किताब होना चाहिए, पर जब खुली किताब के पन्ने पलटते समय कोई ऐसा नजर आने लगे जो स्पेस का अतिक्रमण करता दिखे तो क्या करना चाहिए?

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