सत्ता के भांड कांग्रेसी नेता
कांग्रेस ने दिल्ली के समाचार पत्रों मे पुरे पृष्ट का एक विज्ञापन दिया है जिसमे शहीदों को श्रधांजलि देते हुए इसपर राजनीती नही कराने का आग्रह किया गया है। सच है शहीदों के लाश पर तो राजनीती नही ही होनी चाहिए, परन्तु नपुंसक सरकार के हिजडे नेताओ को भी श्रधांजलि देने का वक्त आ गया है। आज जब आतंकवाद निरोधक दस्ते का चीफ और उसमे मुख्या साथी अदने से हमले मे मारे जाते है और सारी मीडिया उसे शहीद बताते नही थकती, तो इससे मीडिया की समझदारी का खुलास हो जाता है। सब कह रहे है कि एटीएस चीफ करकरे ने सूचना मिलते ही ख़ुद नेतृत्व करने का सहस किया, परन्तु यहाँ प्रश्न ये है कि आख़िर आतंकवादियों से निपटने के लिए बनाई गई विशेषज्ञ दस्ते के चीफ को क्या इस प्रकार की बचकानी हरकत करनी चाहिए? क्या सूचनाओ का विश्लेषण करएक विशेषज्ञ दस्ते की तरह कारवाई करने की उम्मीद देशवासियों ने नही लगा रखी थी?
पर एसा नही हुआ। करकरे साहब मारे गए और मीडिया ने उन्हें शहीद बना दिया। अब आगे देखिये हमारे राजनेताओ का हाल। प्रधानमंत्री इसमे विदेशी शक्तियो का हाथ बताते हुए उनसे बात करने की बात कर रहे है। क्या इन्हे कभी अमेरिका के 9/11 से कुछ सिखाने को मिलेगा? क्या कभी आंतरिक शान्ति के लिए नपुंसकता छोड़ कर सार्थक करवाई कर पाएंगे? आज देश की जनता जानना चाहती है कि क्या भारत के पास इतनी शक्ति नही है कि आतंकवाद को समर्थन देने वाले राष्ट्र को उसकी औकात बता दी जाए? अगर राष्ट्र सक्षम है तो नपुंसक की तरह हाथ नचा नचा कर चैनलों पर भांड की तरह बकवाद करने की जगह पर कारवाई की तैयारी क्यों नही की जा रही है? पर कैसे करेंगे कोई करवाई ये राजनेता जो संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरु को दामाद बना कर पल रहे है।
माना कि सोनिया को भारत से लगाव नही हो सकता है परन्तु अन्य सारे नेताओ को क्या हो गया है? क्या सता के लिए सारे कांग्रेसी सोनिया का चरण चाटते रहेंगे? क्या किसी मे ताकत नही है कुछ बोलने की? आज जरुरी है कि राजनितिक द्वेष भूल कर सारे नेता एकजुट हो और उन ताकतों को बता दे की भारत राष्ट्र की तरफ़ आँख उठाने का परीणाम क्या होता है। पर पहल तो सत्ता मे बैठे नेताओं को ही करनी होंगी। अब देखना ये है कि ये भांड की तरह टीवी चैनलों पर बस हाथ नचाना जानते है या कुछ कर के भी दिखाते है?
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4 comments:
जिहाद के नाम पर ये फैलाता है जूनून
मासूमों का खून बहाकर पाक को सुकून
आप भी, अपना आक्रोश व्यक्त करे
http://wehatepakistan.blogspot.com/
जिहाद के नाम पर ये फैलाता है जूनून
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खुली जीप में करकरे ख़ुद ही फिल्मी हीरो की स्टाइल में निकल पड़ा था, उसी स्टाइल में कैमरों के सामने पोज़ देते हुए उसने हेलमेट और बुलेट प्रूफ जैकेट पहनी. और आतंकवादीयों ने सब टीवी पर देखा और पहले मौके पर ही उसके गले में गोली मारकर एक ही फायर में ढेर कर दिया. ऐसी बेवकूफी (हीरोगीरी) को लाखों सलाम, पर यह फ़िल्म नहीं असली ज़िन्दगी है, यहाँ अक्सर जानबूझ कर हीरोगीरी दिखाने वाले को मरना पड़ता है.
मृत्यु के बाद व्यक्ति अपने सही-ग़लत,अच्छे-बुरे कृत्यों से ऊपर उठ जाता है. कृपया करकरे के लिए सहानुभूति रखें .
कहते है की इतिहास हमेशा अपने आप को दोहराता है.जब मोहम्मद गौरी/महमूद गजनबी जैसे आक्रमणकारियों का ये देश कुछ नहीं बिगाड पाया, जो कि सत्रह-सत्रह बार इस देश को मलियामेट करके चलते बने, तो ये लोग अब क्या उखाड लेंगे.
वैसे भी ये बापू का देश है(भगत सिहं का नाम किसी साले की जुबान पे नहीं आयेगा).
अहिंसा परमो धर्म:
अब और क्या कहें, सरकार चाहे अटल बिहारी वाजपेयी की हो या मनमोहन सिंह की, आतंकवाद हमारी नियति है। ये तो केवल भूमिका बन रही है, हम पर और बड़ी विपत्तियां आने वाली हैं।क्यूं कि 2020 तक महाशक्ति बनने का सपना देख रहे इस देश की हुकूमत चंद कायर और सत्तालोलुप नपुंसक कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री महोदय ” भारत इस तरह के हमलों से विचलित नहीं होगा और इस हमले में शामिल लोगों-संगठनों का मुकाबला पूरी ताकत से करेगा।”
अजी छोडिये, इन बूढी हड्डियों मे अब वो बात कहां, आप ‘सोना-चांदी च्यवनप्राश’ क्यों नही ट्राई करते. शायद खून् मे उबाल आ ही जाय.
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