सोमवार, 3 नवंबर 2008

प्रेम विवाह बनाम पारम्परिक शादी

प्रेम विवाह और पारंपरिक शादी के बारे मे बात कराने का विचार काफी दिनों से बन रहा था, पर कोई शुरुआत नही हो पा रही थी। अचानक एक दोस्त के द्वारा घर वालो से विद्रोह कर प्रेम विवाह कराने और एक अभिन्न मित्र की बेमेल विवाह के बाद तिल तिल जिंदगी गुजारता देख कर मेरा इरादा और पुष्ट हुआ। वर्तमान समय मे हमारी सामाजिक संरचना मे प्रेम विवाह और पारंपरिक शादी को लेकर एक विरोधाभास चल रहा है। समाज मे स्वीकार्य न होते हुए भी कई जगह पर इसे स्वीकृति दिलाने के लिए माता पिता arrange marriage मे बदल रहे है। मेरे एक दोस्त के बड़े भाई दिल्ली मे एमबीएकर नौकरी कर रहे है। सुविधा के लिए उन्हें हम संजय नाम दे देते है। संजय भइया ने अपने घरवालों को बोल दिया था की वे एक लड़की से प्यार करते है और उसी से शादी करेंगे, अगर येसा नही हुआ तो शादी नही करेंगे। लगभग १ सालतक कशमकश और अंतर्द्वंद के बाद अंततः उनकी शादी हुई और वे अच्छे से रह भी रहे है। इस पुरे प्रकरण मे घर वालों को सबसे ज्यादा एतराज इस बात से था के उनके प्रेम विवाह के बाद छोटे लडके की अच्छे घर मे शादी नही हो पायेगी। परन्तु उनकी शादी के १० माह बाद ही किसी को कुछ याद नही और अच्छे घरों से रिश्ते भी आ रहे है।


येसी ही एक दूसरी घटना है। इसमे लड़की अपने से निम्न जाती मे शादी करना चाहती है, परन्तु उसके घरवाले तलवार लेकर खड़े है। मजेदार बात ये है की उसका भाई जो शादी का सबसे ज्यादा विरोध कर रहा है, ख़ुद एक कायस्थ लड़की से शादी कराने के लिए अपने रिश्तेदारों को मानाने मे लगा है।


मैंने इस बाबत दिल्ली विश्वविद्यालय के मास्टर डिग्री के छात्र शुभम कुमार से बात की। उसके विचार उसी के शब्दों मे "प्रेम विवाह आज भी हमारे समाज मे सफल नही है जबकि इसके कई सकारात्मक पक्ष हैं। समाज इतने विकास के बाद भी प्रेम विवाह को सही नजरिये से नही देखता है। आज हम दावा करते है की हम २१वी शताब्दी मे जी रहे है, परन्तु क्या आज भी हमारे विचारों मे विकास का कोई प्रभाव नजर आता है? प्रेम विवाह की बात सुनते ही सबसे पहला विरोध परिवार के सदस्यों के द्वारा होता है; फिर ये कहने का क्या औचित्य है कि बच्चों कि खुशी मे ही हमारी खुशी है?


प्रेम विवाह के सबल पक्ष कि बात करे तो इसमे सबसे पहली व महत्वपूर्ण बात ये होती है कि लड़का और लड़की एक दुसरे को अच्छी तरह से जान चुके होते है। दोनों को एक दुसरे की पसंद व नापसंद के बारे मे जानकारी होती है। दहेज़ की बात पूर्ण रूप से बेमानी हो जाती है। जबकि पारंपरिक शादी मे नए जीवन की शुरुआत मे दोनों अजनबी होते है। अगर विचार नही मिले तो दोनों का पुरा जीवन एक समझौता बन कर रह जाता है। इसका खामियाजा नई पीढी को भुगतना पड़ता है।


वैसे अब छिटपुट तौर पर प्रेम विवाह को भी स्वीकृति मिलाने लगी है, चाहे मज़बूरी से ही परन्तु आगे का समय प्रेम विवाह का ही है, इसलिए हम अपनी आने वाली पीढी से कह सकते है कि बेझिझक प्यार करो जमाना तुम्हारा है...

5 comments:

Unknown 5 नवंबर 2008 को 8:04 pm बजे  

धन्यवाद आशा जी, मेरे ख्याल से जमाना तो प्रेम विवाह का ही आने वाला है...

Unknown 5 दिसंबर 2008 को 6:48 pm बजे  

apki soch bahut achhi hai.....apke blog se apke samajh ke liye jagrukta ka pata chalta hai..aap bahut achha likhte ho...aage bhi aisa hi likhte rehna...all d best 4 ur bright future.......

बेनामी,  5 दिसंबर 2008 को 7:05 pm बजे  

aap sach me bahut achha likhte ho....aap achha sochte ho...aaj kal ke youth ke liye apka blog inspiration hai...main bhi inspired ho gayi hu...all d best...4 ur shinning future...hamesha aise hi likhte rehna...main hamesha padhungi...

Unknown 5 दिसंबर 2008 को 7:27 pm बजे  

पारुल और स्वाति, आप दोनों को मेरा ब्लॉग बहुत अच्छा लगा इसके लिए धन्यवाद... ब्लोअग पोस्ट पर आपके कमेन्ट से हमे लिखने की प्रेरणा मिलती है इसलिए आप आगे भी अपनी टिपण्णी जरुर लिखे. आप चले तो अपना ईमेल पर भी नए पोस्ट को मंगा सकती है. इसले लिए subscribe via email में अपना ईमेल आईडी डाल कर subscribe कर लीजिये.

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