सोमवार, 6 अप्रैल 2009

सबसे पहले ख़ुद से प्यार करो

One who can't love with human beings who are just around them how can love with god whose presence is not authenticated but based on trust and imagination.

मेरे एक दोस्त ने यह एसएमएस किया और इसे पढ़ते ही जो विचार मेरे मन मे आया उसे ही मै इस पोस्ट मे लिख रहा हूँ। प्रश्न अगर यहाँ यह है कि अगर व्यक्ति अपने आसपास मौजूद दुसरे मनुष्य से प्यार नही कर सकता तो आखिर किस प्रकार भगवान मे भक्ति रख सकता है जबकि भगवान का अस्तित्व का कोई प्रमाण नही और ये बस विश्वास पर आधारित है। प्रश्न का जवाब चाहे जो भी हो पर यहाँ मेरा भी एक प्रश्न है कि अगर व्यक्ति ख़ुद से प्यार नही कर सकता तो क्या वो दुसरे मनुष्य या जीव के साथ प्यार कर सकता है?
इसलिए सबसे पहले ख़ुद से प्यार करना सीखे और तब किसी से प्यार करे। पर ये तो सब को लगता है कि वो ख़ुद से बहुत प्यार करता हैफिर ख़ुद से प्यार करने का क्या मतलब है? नये कपड़े, अच्छा खाना, बड़ा सा घर, गाड़ी, ऐश-ओ-आराम के ढेर सारे साधन!!! शायद नही! ख़ुद से प्यार करने का मतलब है सारे कम इस ढंग से करे कि मन की शान्ति मिल सके और दिल का सुकून बना रहे। कुछ येसा जिसके बाद लगे की सच मे मानव जीवन पाने के बाद ख़ुद को मानव बना लिया है। ये तो बंगला-गाड़ी से मिल सकता है ना ही कपडों से
अब आप ख़ुद से पूछ ले कि आप किस से कितना प्यार करते है...

2 comments:

RAJIV MAHESHWARI 7 अप्रैल 2009 को 8:54 am बजे  

भाई अभिषेक
जिस तरह से आपना समाज में परिवर्तन आरहा है उसमे प्यार के मायने भी बदल रहे है.
भाई का भाई से ,माँ ,बहन ,बाप तक का प्यार का रूप ही बदल रहा है.
सब कुछ रूपये -पेसे में तुलने लगा है.

दिनेशराय द्विवेदी 7 अप्रैल 2009 को 9:00 am बजे  

प्यार सभी करते हैं खुद पर,
विश्वास नहीं करते।

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