रविवार, 1 मार्च 2009

स्लमडौग मिलिनेयर और बाल उत्पीडन

स्लमडौग मिलिनेयर के बाल कलाकार अज़हरुद्दीन की उसके पिता के द्वारा पिटाई से आहत केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्री रेणुका चौधरी ने इस मामले की जाँच राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से कराने की बात कही हैस्लमडौग मिलिनेयर मे काम करने के बाद अज़हरुद्दीन मीडिया मसाला बन गया हैवैसे मान लेते है कि यह मात्र एक ख़बर है पर इसी बहाने कुछ सामाजिक सरोकारों के बारे मे बात करने का मौका मिला है.
क्या आज से पहले माननीय मंत्री महोदय को इस बात की ख़बर नही थी की भारत मे बाल श्रम और बाल उत्पीडन की घटना हद से ज्यादा सामान्य है। इस बाबत बनाये गए सारे कानून बस किताबों मे लिखे रह गए है। आज भी शहरों मे ना जाने कितने अज़हरुद्दीन, ना जाने कितने जमाल और ना जाने कितनी लातिकायें कूड़े के ढेर से की शुरुआत करती है, सारा दिन गाली सुनने के बाद वही कूड़े का ढेर फिर से उनका बिछौना बन जाता है। ना जाने कितने बचपन होटल, मोटर कारखाना, बीडी और दियासलाई उद्योग से लेकर पटाखा और लाख की चुडिया बनाने मे ही समाप्त हो जाते है। बाल श्रम निरोधक कानून का सरेआम धज्जियाँ उडाई जाती है।
जिस एक अज़हरुद्दीन की पिटाई के कारण मंत्री महोदया हैरान हो रही है, उसी स्लम मे सैकडो अज़हरुद्दीन के साथ हर दिन ना जाने कितने बार ऐसा होता है... पर अज़हरुद्दीन तो आज स्टार हो गया है, मीडिया का मसाला है और बाजार मे बिकने वाली हॉट आइटम... जिस मीडिया को दफ्तर के बगल मे चाय की दुकान पर काम करता कल्लू और छोटू कभी नही दिखता वह भी अज़हरुद्दीन की पीडा देख कर बिलख रहा है। और मंत्री महोदया तो बाजी मार गई। अब उनका बयान अख़बारों और टेलीविजन चैनल्स की सुर्खियाँ बनेगा। पर क्या कभी मंत्री महोदया ने दिल्ली मे चलते समय चौराहों पर लाल बती के समय इधर उधर भागते बचपन को भी देखा है?
मंत्री महोदया को पता है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार कानून इसी प्रकार के मामलों के लिए बनाने है। और यह इस सच को बहुत मजबूती के साथ रखता है कि भारत मे सारे अधिकार और कानून साधनहीनो के लिए नही है। सुन लो सारे कल्लू, मुन्नू, छुटकी तुम्हे भी राष्ट्रीय बाल अधिकार कानून का सहारा चाहिए तो पहले स्लमडौग मिलिनेयर जैसी किसी फ़िल्म मे जाकर काम करोफिर देखना सारे कानून और सारी मीडिया तुम्हारे पीछे होगी

1 comments:

Asha Joglekar 1 मार्च 2009 को 2:35 pm बजे  

मंत्री महोदया को पता है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार कानून इसी प्रकार के मामलों के लिए बनाने है। और यह इस सच को बहुत मजबूती के साथ रखता है कि भारत मे सारे अधिकार और कानून साधनहीनो के लिए नही है। सुन लो सारे कल्लू, मुन्नू, छुटकी तुम्हे भी राष्ट्रीय बाल अधिकार कानून का सहारा चाहिए तो पहले स्लमडौग मिलिनेयर जैसी किसी फ़िल्म मे जाकर काम करो।
बिलकुल सही ।

एक टिप्पणी भेजें

नया क्या लिखा गया है

आपके विचारों का स्वागत है

कंप्यूटर में कोई समस्या है??

link to web designers guide

ProBlogger Template Managed by Abhishek Anand And created by   ©Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP