सोमवार, 9 मार्च 2009

तू आना मेरे देस लाडो (मेरी चिट्ठी लाडो के नाम)

आज सुबह सुबह अखबार खोला तो देखा कि टेलीविजन पर एक नया सीरियल प्रारम्भ होने जा रहा है, आज से ही नाम है .....ना आना इस देस लाडो तभी सोचा कि मै भी अपनी लाडो से बात कर लूँ

मेरी प्यारी मुनिया
आज तुझसे बात करने का बहुत दिल कर रहा है वैसे मै तो हर वक्त तुझे याद करता हूँ पर आज सुबह से दिल कुछ ज्यादा ही बेचैन हो गया है तुझसे बात करने के लिए लाडो, देख ना दुनिया को तुझसे ना जाने कौन सा बैर हो गया है अब तो टेलीविजन पर भी सीधे कहा जाता है ...ना आना इस देस लाडो पर जब तक मै यहाँ हूँ तुझे इस देस मे आना ही होगा
पता है तुझे बचपन से ही तुम्हारी कमी सबसे ज्यादा खली है मुझे मै घर मे सबसे बड़ा और मुझसे छोटे तीन भाई, पर मेरी मुनिया, मेरी गुडिया कही नही थी बहुत मन करता था कि मेरी गुडिया जैसी प्यारी सी बहना हो जिसके साथ मै खेलु जो मेरे दुःख को समझे, जो मेरी दोस्त हो पता है लाडो, लड़किया जितना भावो को बिना बताये समझ लेती है उतना लड़के कभी नही
तेरी कमी थी तो आस-पड़ोस के जहा कोई मुनिया, कोई लाडो दिखती उसे हम गोद मे ले कर घंटो दुलार करते रक्षाबंधन के दिन तो तेरी याद सारा दिन रुलाती रहती थी कलाई मे कुछ धागे तो बंधे रहते थे पर उसमे मुनिया का, मेरी गुडिया का प्यार नही होता था ना तुझे याद है लाडो, कैसे बचपन मे घंटो अकेले मे बैठ कर तुझसे बातें करता था तेरे लिए सजीला-सा दूल्हा ढूंढ़ लाने, तुझे पलकों मे सजा के रखने का वादा करता था
पर तू ना आई तेरी कमी मेरी जिंदगी मे हमेसा बनी रही इस कमी ने मुझे लड़कियों के लिए ज्यादा संवेदनशील बना दिया लोगों ने मेरा मजाक बनाना भी शुरू कर दिया मुझे गाली के रूप मे फेमिनिस्ट कहा जाने लगा पर परवाह कहा की मैंने इन सब बातों का जवानी मे मैंने फिर तेरे सपने अलग ढंग से देखने लगा अब लगता था कि तू मेरे घर मे मेरी बेटी बन कर जाओगी फिर लाडो होगी और मै रहूँगा कितना मजा आएगा ना मेरी बिटिया मुझे पप्पा पप्पा कह के बुलाएगी, मेरे बाल खीचेगी, मेरे पेट पर बैठ कर खिलखिलाएगी पर वो सपना भी टूट गया
सच कहता हूँ लाडो, अगर कभी हो सका तो तुझे किसी तरह से इस देस मे ले के आऊंगा मै कहता हूँ, जो कहते है ...ना आना इस देस लाडो, उनके यहाँ तू पीढियों तक जाना छोड़ दे फिर वही मन्दिर, मस्जिद और पीर हकीमों के पास तेरे लिए दुआ मागने भटकेंगे
तब तक तू आजा मेरे देस लाडो, मै पलक पावडे बिछाये तेरा इंतजार कर रहा हूँ

तुम्हारा
सस्नेही

1 comments:

dschauhan 17 जुलाई 2009 को 10:41 am बजे  

अति उत्तम विचार हैं आपके! बधाई!
देवेन्द्र सिंह चौहान

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