बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

मै मरा पर यादें अब भी जिन्दा हैं

दिल की बात जब जुबां पर नही पाती
घुटते अहसासों के साथ जब अरमां सुलगते है
कुछ कहने की ख्वाइश तडपाती है
और शब्द जुबां पर आकर पिघल जाते है
जेठ मे चोटियों पर पिघलते बर्फ की तरह
बेचैनी जब इस कदर बढ़ जाए कि
ख़ुद का चेहरा अजनबी बन जाए
तो जिंदगी गुनाह लगने लगती है।

पर यही घुटन तो मेरी जिंदगी है
अहसास मेरी सांसे है और
जुबान पर आकर पिघलते शब्द से मुझे मिलती है नमी
और कुछ कहने की कसमसाहट से ही
बनी रहती है दिल मे धड़कन
फिर मै कैसे छोड़ दूँ इन सब को
जो मेरी जिंदगी बन गई है

लो मैंने छोड़ दिया ख़ुद को
जहाँ को दे दिया पैगाम अपनी मौत का
और मै जिन्दा हूँ अब भी
क्यूंकि मेरे पास है कुछ यादें
जिनको मारे बिना मेरी मौत की हर पैगाम अधूरी है

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