हम भी करेंगे प्यार का इज़हार
ए मुहब्बत तेरे मुकाम पे रोना रोना आया
ए मुहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
जज्बा रखते थे खाक होने का हम भी
खाक होने से पहले नया दिलदार आया
ए मुहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
जज्बा रखते थे खाक होने का हम भी
खाक होने से पहले नया दिलदार आया
बाअदब, बामुलाहिजा सावधान... कहानी-ए-वलेंटाइन जुबानी-ए-खाकसार आपके हुजुर मे पेश होने जा रहा है...
हमने भी देखी है अपनी जवानी मे प्रेम को पनपते और अंकुरित होने से पहले ही कुम्हलाते। वो जज्बा भी 'खाक हो जायेंगे हम ए सनम तुमको ख़बर होने तक' और आज का वैलेंटाइन प्यार कि '
दिया है आज तुझे गुलाब,
जिसमे भरा है मेरा प्यार,
चलो चलते है डेट पर,
होटल है, सुरा और बिस्तर भी है तैयार,
अब बोलो भी, मुह खोलो भो,
वरना दुसरे पर ट्राई करे यार
जिसमे भरा है मेरा प्यार,
चलो चलते है डेट पर,
होटल है, सुरा और बिस्तर भी है तैयार,
अब बोलो भी, मुह खोलो भो,
वरना दुसरे पर ट्राई करे यार
हर साल वैलेंटाइन आना है और ये खुला मौका देता है हमे अपने प्यार के इज़हार का। इज़हार-ए-मुहब्बत न था कभी इतना आसान और देख लो न जाने कितने मूढ़मति इसका विरोध करने को तैयार बैठे है। पर चुप भी करो यार। आज तो प्यार का साथ देने को न जाने कितने है तैयार, भेज रहे है गुलाबी चड्ढी और देख लेना वैलेंटाइन डे को भेजेंगे अपनी बेटी बहन को घुमने पब और बार, कहेंगे उन्हें कर लो खुल्लम खुल्ला प्यार, क्यूंकि ये है वैलेंटाइन डे का त्यौहार।
मन छोटा मत करो, अभी तो और भी बहुत कुछ होना बाकि है। तुम्हे क्या लग रहा है कि ये जो बड़ी बड़ी कंपनिया वैलेंटाइन डे पर करोडो का बाज़ार पर दाव लगा रखी है, वो तुम्हे अकेले छोड़ देंगी? ना जी ना, आपके साथ तो पुरा बाज़ार खड़ा है, प्यार के इस व्यापर के लिए।
खाक होने के लिए आज किसी खाकसार की जरुरत किसे है। आज कितनो को याद है सोहनी महिवाल कि कथा? कौन याद करना चाहता है हीर राँझा के प्यार को? जब पुरी दुनिया ही result oriented हो गई है तो प्यार पर इसका प्रभाव क्यों ना पड़े? पहले हम कालेजो मे मुहब्बत की कहानिया ढूंढा करते थे और बदले मे कही कही से धुँआ उठता नजर आता था, पर आज स्कुलो मे बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड ना होने पर बच्चो के मन मे हीन ग्रंथि आने लगती है। वे ख़ुद को पिछड़ा मानने लगते है। और यहाँ धुवां को खोजने कि जरुरत कहा होती है, हर तरफ़ आग ही आग मिलती है।
याद आ रही है जयशंकर प्रसाद की कुछ पंक्तिया
पागल रे, वह मिलता है कब, उसे खो देते है सब
और इसी खोने पाने के खेल मे ना जाने कितने किशोर अपना भविष्य खो दे रहे है। और बाज़ार हर दिन उन्हें एक नया उत्सव और एक नया त्यौहार देने पर आमद है कि लो बच्चो मैंने दिया तुझे एक और मौका, कर लो खरीददारी, दे दो उपहार, भेजो ग्रीटिंग कार्ड। और प्रेम का त्यौहार खूब फल फूल रहा है।और प्रेम का एक नया रूप भी देखने को मिल रहा है, सोशल नेट्वर्किंग साईट जैसे की ऑरकुट या फ़ेसबूक पर। जहा प्रेम का आरम्भ ही होता है सेक्स के साथ, ना जाने कितने तरुण-तरुणिया वर्जित फल को पाने के लिए इन सोशल नेट्वर्किंग साइट्स के खुले प्लेटफोर्म का उपयोग करने को बेचैन है। यहाँ भी वैलेंटाइन का खुमार सर चढ़ कर बोल रहा है। इस प्रेम और व्यापार के बाढ़ मे हम जाने क्यों याद करते है वो दिन जब प्यार दो दिलों की आरजू हुआ करता था, चढ्ढिया शरीर के महत्वपूर्ण हिस्से को छुपाने के साथ साथ ख़ुद भी छुपी रहती थी, प्यार के इज़हार पर गुलाब का फूल दिया जाता था डेट पर जाने का निमंत्रण नही और प्यार कामना नही भावना हुआ करता था।
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